"एक स्कूल, एक चपरासी और एक आईएएस अफसर"

"एक स्कूल, एक चपरासी और एक आईएएस अफसर"

यह कहानी है राजस्थान के एक छोटे से गाँव के सरकारी स्कूल की। स्कूल बहुत साधारण था — कच्चे कमरे, टूटी बेंचें, और कम संसाधन। लेकिन वहाँ एक छात्र था — अनिल कुमार।

अनिल का परिवार बहुत गरीब था। उसके पिता नहीं थे और माँ खेतों में मजदूरी करती थीं। स्कूल आने के बाद अनिल अक्सर थका रहता था और कभी-कभी भूखा भी।

एक दिन स्कूल के चपरासी ने देखा कि अनिल रोज़ दोपहर में अकेला बैठा रहता है। उसने प्यार से पूछा, “बेटा खाना क्यों नहीं खाते?” अनिल ने सिर झुका लिया।

उस दिन से उस चपरासी ने रोज़ अपने घर से एक रोटी और सब्ज़ी अनिल के लिए लाना शुरू किया।

वक्त बीतता गया। अनिल ने मेहनत की, इंटर में टॉप किया, स्कॉलरशिप मिली, और फिर उसने सिविल सर्विसेस की तैयारी शुरू की।

सालों की कड़ी मेहनत के बाद—
अनिल कुमार भारतीय प्रशासनिक सेवा (IAS) में चयनित हुआ।

जब वो अफसर बना और अपने गाँव लौटा, तो सबसे पहले वो अपने पुराने स्कूल गया।
वहाँ खड़े होकर उसने अपने पहले गुरु — वो चपरासी — के पैर छुए और कहा:

> “मेरे लिए वो रोटी नहीं थी... वो भविष्य की एक उम्मीद थी।”
इस कहानी से हमें क्या सीख मिलती है?

मदद करने के लिए बड़ा पद नहीं, बड़ा दिल चाहिए।

स्कूल के हर सदस्य की भूमिका होती है — चाहे वो टीचर हो या चपरासी।

एक छोटी-सी मदद, किसी की ज़िंदगी बदल सकती है।

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